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निकाय चुनाव में सपा प्रत्याशी और नेता के बगावत से बिगड़ न जाए खेल

 

UP Nikay Chunav: उत्तर प्रदेश में निकाय चुनाव की धूम है। हर शहर की हर गलियों में सिर्फ निकाय चुनाव की ही गूंज सुनाई दे रही है। तमाम सियासी दल इस चुनाव में अपनी पैठ बनाने की जद्दोजहद में जुटे हुए हैं लेकिन इन चुनावों में भी सबसे आगे भारतीय जनता पार्टी चल रही है। वहीं मुख्य विपक्षी दल समाजवादी पार्टी का बुरा हाल होता चला जा रहा है।

जी हां, समाजवादी पार्टी से जुड़े कई वरिष्ठ नेताओं के साथ साथ पार्टी से चुनकर आए कई जनप्रतिनिधि भी समाजवादी पार्टी छोड़कर बीजेपी का हाथ थाम रहे हैं। निकाय चुनाव में बीजेपी लगातार खुद को मजबूत कर रही है, इस बीच कई विरोधी दलों में सेंधमारी की भी कोशिश की जा रही है।

ये कहानी उस वक्त शुरू हुई, जब शाहजहांपुर से समाजवादी पार्टी की तरफ से अर्चना वर्मा मेयर कैंडिडेट बनाई गईं। नामांकन से ठीक पहले भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो गईं। खुद डिप्टी सीएम बृजेश पाठक और कैबिनेट मिनिस्टर सुरेश खन्ना ने उन्हें पार्टी ज्वाइन कराई। अर्चना वर्मा के इस कदम से जहां बीजेपी गदगद हो गई तो वहीं समाजवादी पार्टी बैकफुट पर चली गई।

यह सिलसिला यहीं नहीं रुका, 1 दिन पहले ही सरोजनीनगर नगर से पूर्व जिला पंचायत सदस्य और समाजवादी पार्टी नेता पलक रावत ने भी भारतीय जनता पार्टी की सदस्यता ग्रहण की। डिप्टी सीएम बृजेश पाठक ने उनका बीजेपी में स्वागत करते हुए समाजवादी पार्टी को आड़े हाथों लिया। उन्होंने कहा कि समाजवादी पार्टी ने हमेशा गुंडे माफिया पाले हैं, उन्होंने यह भी कहा कि समाजवादी पार्टी पूरी तरह से खत्म हो चुकी है।

वैसे सपा को झटके पर झटके मिलने का सिलसिला लगातार जारी है। सपा के राष्ट्रीय महासचिव शिवपाल यादव के खास माने जाने वाले अजय त्रिपाठी मुन्ना मैं भी आज सपा छोड़ दी और भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो गए। बताया जा रहा है कि विधानसभा चुनाव के दौरान अजय ने लखनऊ उत्तर से टिकट मांगा था, लेकिन उन्हें टिकट नहीं मिला था। प्रसपा का सपा में विलय होने के बाद शिवपाल के निर्देश पर उन्होंने महापौर पद के लिए तैयारी की, लेकिन ये सीट महिला के लिए आरक्षित हो गई। इसके बाद अजय त्रिपाठी ने प्रसपा से जुड़े कुछ नेताओं को पार्षद का टिकट देने की पैरवी की। उनके सुझाए नामों पर शिवपाल ने मुहर भी लगाई लेकिन किसी को टिकट नहीं दिया गया, जिसके बाद अजय त्रिपाठी ने समाजवादी पार्टी से इस्तीफा दे दिया और भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो गए।

मतलब कुल मिलाकर समाजवादी पार्टी पूरी तरह से टूट चुकी है। उसके सारे जमीनी नेता उससे दूर हो रहे हैं। यह बताता है कि कहीं न कहीं सपा संगठन में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है। अखिलेश यादव 2012 के विधानसभा चुनाव में जीत के बाद इतने गदगद हो गए थे कि उन्हें लग रहा था कि उन्हें हराने वाला कोई पैदा ही नहीं हुआ है। हालांकि यह उनकी एक बड़ी भूल थी क्योंकि उसके बाद जो उनकी हार का सिलसिला शुरू हुआ है वह आज भी जारी है और जिस तरह से निकाय चुनाव में हर रोज सपा को झटके पर झटके मिल रहे हैं। उससे तो यही लगता है कि आगे भी हार का सिलसिला यूं ही चलता रहेगा।

बहरहाल, अखिलेश यादव ने आज निकाय चुनाव को लेकर एक बड़ी बैठक बुलाई है जिसमें अरविंद सिंह गोप, सुनील सिंह साजन के अलावा कई नेता शामिल हुए हैं। अंदाजा लगाया जा रहा है कि वह पार्टी छोड़ने वाले नेताओं की वजह से हताश हैं। यही वजह है कि वह बैठक कर संगठन में सब कुछ ठीक करने में जुटे हुए हैं। हालांकि, इसका शायद कोई फायदा नहीं होने वाला क्योंकि अब बहुत देर हो चुकी है। जिस तरह से समाजवादी पार्टी से एक के बाद एक विकेट गिरते हैं जा रहे हैं उससे तो लगता है कि इस बार बहन जी यानी मायावती की पार्टी ही अखिलेश की पार्टी से आगे निकल जाएगी।

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