Supreme Court: नए संसद भवन के उद्घाटन को लेकर देश में विवाद चरम पर है। कई पार्टियां उद्घाटन समारोह में राष्ट्रपति को ना बुलाए जाने का विरोध कर रही हैं तो कई इसके समर्थन कर रही हैं। यह विरोध इतना बढ़ गया है कि इसके सम्बन्ध में सुप्रीम कोर्ट ने याचिका दर्ज कराई गई लेकिन इस जनहित याचिका सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दी है। सुप्रीम कोर्ट ने याचिका पर सुनवाई से ही इनकार कर दिया।
याचिका खारिज करते हुए कोर्ट ने कहा कि हम जानते हैं कि यह याचिका क्यों दाखिल हुई। ऐसी याचिकाओं को देखना सुप्रीम कोर्ट का काम नहीं है। कोर्ट ने पूछा कि इस याचिका से किसका हित होगा? इस पर याचिकाकर्ता सटीक जवाब नहीं दे पाए। याचिका में शीर्ष अदालत से नए भवन का उद्घाटन राष्ट्रपति से कराने का निर्देश लोकसभा सचिवालय को देने की मांग की गई थी। याचिका में कहा गया कि लोकसभा सचिवालय का बयान और लोकसभा के महासचिव का उद्घाटन समारोह के लिए जारी निमंत्रण भारतीय संविधान का उल्लंघन है।
बता दें कि यह याचिका सुप्रीम कोर्ट के वकील सीआर जया सुकिन ने यह जनहित याचिका दाखिल की थी। इसमें कहा गयाकि उद्घाटन समारोह में राष्ट्रपति को शामिल नहीं करके भारत सरकार ने भारतीय संविधान का उल्लंघन किया है। ऐसा करके संविधान का सम्मान नहीं किया जा रहा है। संसद भारत का सर्वोच्च विधायी निकाय है। भारतीय संसद में राष्ट्रपति और दो सदन राज्यसभा और लोकसभा शामिल हैं। राष्ट्रपति के पास किसी भी सदन को बुलाने और सत्रावसान करने की शक्ति है। साथ ही संसद या लोकसभा को भंग करने की शक्ति भी राष्ट्रपति के पास है। ऐसे में संसद के नए भवन का उद्घाटन राष्ट्रपति द्वारा किया जाना चाहिए।
जानें क्या है विवाद की असल वजह
28 मई को पीएम मोदी नए संसद भवन का उद्घाटन करेंगे। इस पर कांग्रेस और कई अन्य विपक्षी नेताओं का मानना है कि प्रधानमंत्री की बजाय राष्ट्रपति को नए संसद भवन का उद्घाटन करना चाहिए। कांग्रेस का कहना है कि नए संसद भवन का उद्घाटन राष्ट्रपति के हाथों ही होना चाहिए। मुर्मू द्वारा नए संसद भवन का उद्घाटन लोकतांत्रिक मूल्यों और संवैधानिक मर्यादा के प्रति सरकार की प्रतिबद्धता का प्रतीक होगा। वहीँ मुर्मू के द्वारा उद्घाटन ना कराए जाने को विपक्ष ने इसे जातिगत मुद्दा भी बना कर जनता के सामने पेश किया है।
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