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लखनऊ के तीन सीरियल किलर भाइयों की कहानी

 

यूपी के माफियाओं को मिट्टी में मिलाने का संकल्प योगी आदित्यनाथ ने खुद लिया है। ऐसी ही एक कहानी है तीन भाइयों की, जिन्होंने अपने चौथे भाई की हत्या का बदला लेने के लिए कत्लेआम मचा दिया और एसएसपी को फोन करके बोला- "निपटा दिया है अब लाशें उठा लेना।"

साल 2005 था, रमज़ान का पाक महीना चल रहा था। इसी दौरान तहज़ीब का शहर कहा जाने वाला लखनऊ, एक के बाद एक तीन हत्याओं से थर्रा उठता है। लखनऊ के तीन अलग-अलग इलाकों में तीन-तीन खौफ़नाक हत्याओं की वारदात को तीन सगे भाई अंजाम देते हैं जिनके नाम थे सलीम, सोहराब और रुस्तम।
 
क्या वजह थी जो सीरियल किलर बन गए

इनका अपराध की दुनिया से दूर-दूर तक का कोई वास्ता नहीं था। ये अपने-अपने कारोबार में मसरूफ़ थे और हंसी खुशी अपनी जिंदगी गुज़ार रहे थे। लेकिन अपने भाई की हत्या के बाद ये प्रतिशोध की आग में जल रहे थे. इसी आग ने इन तीनों सीधे-साधे भाइयों को सीरियल किलर भाई बना दिया। जिनकी इन तीनों भाइयों ने हत्या की थी, वो कोई दूध के धुले नहीं थे। उन्होंने साल 2004 में रमज़ान के ही महीने में इन तीनों भाइयों के चौथे भाई जावेद को मौत के घाट उतार दिया था। उसकी लाश के छोटे-छोटे टुकड़े करके गोबर में दफना दिया था।

भाई की हत्या और उसके शव के साथ हुई इस बर्बरता ने तीनों भाइयों को तोड़ कर रख दिया। तीनों भाइयों ने अपनी मां को वचन दिया "कि जिस दुख से आज आप और हम दुखी हो रहे हैं। कल यही दुख उनके परिवार वालों को भी सहन करना पड़ेगा।" उन्होंने अपनी मां को जो वचन दिया था, उसे पूरा भी किया। साल 2005 में रमज़ान के महीने में उन्होंने शहर के हुसैनगंज, खदरा और मड़ियांव इलाके में जाकर सरेआम, सरेराह और सरेबाज़ार, बेख़ौफ़ होकर अपने भाई की हत्या करने वाले तीनों आरोपियों को एक दर्दनाक मौत दी। ये तीनों भाई लखनऊ के तत्कालीन एसएसपी आशुतोष पांडे को फोन करते हैं और बोलते हैं- "निपटा दिया है अब लाशें उठा लेना।" यही वो दिन था जिसके बाद इन तीनों भाइयों ने फिर कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। अपराध की दुनिया में ये तीनों भाई इतने आगे निकल गए कि शहर में इनका इतना रसूख बन गया कि हर कोई इन तीनों भाइयों से खौफ खाने लगा।

एक के बाद एक कर इनकी पूरी गैंग खड़ी हो गई

भाई के हत्यारों को मौत के घाट उतारने के बाद उन्होंने और भी कई हत्याएं कीं। धीरे-धीरे इनकी पूरी एक गैंग खड़ी हो गई। पूरे शहर में बस इन्हीं तीन भाइयों का सिक्का चलने लगा। इनका दबदबा पूरे लखनऊ शहर में बढ़ता ही जा रहा था। सारे बड़े व्यापारी इन से घबरा गए थे। सिक्योरिटी मनी के तौर पर पैसों से भरे बड़े-बड़े बैग ये व्यापारी खुद ही इन तीनों भाइयों के घर पहुंचाने लगे। सीरियल किलर ब्रदर्स के नाम से कुख्यात हुए सलीम, सोहराब, रुस्तम ने अपराध की दुनिया में वसूली हत्या सुपारी किलिंग को अंजाम देना शुरू किया। वो दिनदहाड़े हत्या करते रहे, वसूली करते रहे, खुलेआम माफिया गिरी करते रहे। लेकिन सबूत के तौर पर इन तीनों भाइयों के खिलाफ कभी कोई गवाही देने के लिए खड़ा नहीं होता था जिससे वो हर बार बच जाते थे।

मायावती की सरकार बनते ही उनका दबदबा कम हो गया

साल 2007 की बात है जब विधानधान सभा चुनावों में मायावती अपनी सरकार बनाती हैं। मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठते ही उन्होंने सारे माफियाओं के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। यूपी का पुलिस तंत्र अब सख़्त हो चुका था। सारे माफियाओं की माफिया गिरी ढीली पड़ गई और इसी के साथ-साथ सलीम, रुस्तम और सोहराब भी कमज़ोर पड़ गए और शहर में उनका दबदबा कम हो गया।

अखिलेश की सरकार में फिर से बाहर निकल आये

फिर 2012 के चुनाव में अखिलेश यादव की सरकार आई। सारे माफिया अपने बिल से बाहर निकाल आए। यूपी में प्रशासन फिर से कमजोर पड़ गया और माफिया एक बार फिर मजबूत हो गए। माफियाओं का दबदबा एक बार फिर बढ़ने लगा। अब सलीम, रुस्तम और सोहराब भला बहती गंगा में हाथ क्यों ना धोते। 29 सितंबर 2013 को इन सीरियल किलर भाइयों ने छावनी परिषद के पूर्व सदस्य पप्पू पांडे की मौलवीगंज में गोली मारकर हत्या करा दी। पप्पू पांडे की हत्या के पीछे सिर्फ लखनऊ में कम होते खौफ को दोबारा कायम करने और रंगदारी बढ़ाने की मंशा थी। संभल के पूर्व सांसद शफीक उर रहमान वर्क के नाती फैज की चौक इलाके में गोलियों से भून कर हत्या करवा दी गई।

लखनऊ से दिल्ली तक थी इनकी धमक

इन वारदातों के अलावा सलीम, सोहराब, रुस्तम ने लखनऊ, कानपुर, इलाहाबाद, वाराणसी से लेकर दिल्ली में तक व्यापारियों से रंगदारी वसूली और रंगदारी न देने पर जान से मारने की नीयत से हमले करवाए। तिहाड़ जेल में रहने के बावजूद सलीम, सोहराब, रुस्तम अपराध की दुनिया में खौफ का नाम बने रहे। तीनों भाइयों पर लखनऊ से लेकर दिल्ली तक 2 दर्जन से ज़्यादा मामले दर्ज हैं जिसमें हत्या, हत्या का प्रयास, रंगदारी वसूली, डकैती जैसी जघन्य घटनाएं शामिल हैं।

सीरियल किलर भाई सलीम, रुस्तम और सोहराब अलग-अलग जेल में बंद हैं। रुस्तम फिलहाल तिहाड़, सोहराब दिल्ली के मंडावली और सलीम फतेहगढ़ जेल में बंद है। सलीम, रुस्तम और सोहराब का संगठित गिरोह है। कहा जाता है आज भी ये तीनों भाई जेल से बैठे-बैठे ही कई आपराधिक वारदातों को अंजाम दे रहे हैं। अब प्रशासन उनके खिलाफ बड़ी कार्रवाई की तैयारी में है। सलीम, सोहराब, रुस्तम और उनके गुर्गों की अवैध इमारतों पर जल्द ही प्रशासन का बुलडोजर भी चल सकता है। कुल मिलाकर मतलब सिर्फ इतना सा है कि इन तीनों भाइयों को भी मिट्टी में मिलाने की कवायद शुरू हो चुकी है और इसकी बानगी जल्द ही देखने को मिल सकती है।

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