ओडिशा के बालासोर जिले में हुए ट्रेन हादसे ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया है। इस हादसे में 300 से ज्यादा लोगों की जान चली गई है और हजारों यात्री बुरी तरह ज़ख़्मी हुए हैं। कहा जा रहा है कि यह संख्या अभी और भी बढ़ने वाली है। इस भयानक ट्रेन हादसे ने बीते कई दशकों में हुए कई उन रेल हादसों के ज़ख्म ताजा कर दिए हैं, जिन्होंने कभी पूरे देश को रुलाया था। भारत में होने वाले रेल हादसों में हर साल कई जानें जाती हैं। रेल दुर्घटना की कई वजहें होती हैं जिनमें तकनीकी खराबी, मानवीय भूल, लापरवाही, खराब मौसम जैसी वजहें शामिल हैं। तो चलिए आज उन रेल हादसों के बारे में जिन्होंने कई जिंदगियां छीन लीं।
इस फेहरिस्त में सबसे पहला नंबर आता है बागमती नदी ट्रेन हादसे का
यह देश के इतिहास में एक ऐसा रेल हादसा था, जिसने सिर्फ देश को ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया को झकझोर कर रख दिया था। बता दें,उस समय बरसात का मौसम था, शाम का समय था और तारीख थी 6 जून और साल था 1981 का। यात्रियों से खचाखच भरी 9 बोगियों वाली पैसेंजर ट्रेन, मानसी से सहरसा के लिए जा रही थी। ट्रेन बदला घाट और धमारा घाट स्टेशन के बीच पड़ने वाली बागमती नदी पर बने पुल से गुजर ही रही थी कि उसी वक्त सबसे बड़ा हादसा हो गया। पिछले 7 डिब्बे ट्रेन से अलग होकर नदी में गिर गए। बरसात का मैदान था तो बागमती का जलस्तर भी बढ़ा हुआ था, पलक झपकते ही ट्रेन नदी में डूब गई। ट्रेन के उन 7 डिब्बों में सवार यात्रियों को बचाने वाला वहां कोई नहीं था। आसपास के लोगों के नदी के पास पहुंचने तक सैकड़ों लोगों की नदी में डूबकर मौत हो चुकी थी। इस हादसे को भारत का सबसे बड़ा और विश्व का दूसरा सबसे बड़ा रेल हादसा बताया गया। हादसे के कई दिनों बाद तक सर्च ऑपरेशन चला। गोताखोरों की 5 दिन की कड़ी मशक्कत के बाद नदी से 200 से भी ज्यादा लाशें निकालीं गईं। सरकारी आंकड़े कहते हैं कि इस हादसे में लगभग 300 यात्रियों की मौत हुई, जबकि आसपास के लोगों का कहना था कि इस रेल हादसे में करीब 800 लोगों ने अपनी जान गंवाई।
अब बात करते हैं फिरोजाबाद रेल हादसे की
तारीख थी 20 अगस्त, 1995, रात के करीब 2 बजकर 46 मिनट पर दिल्ली जाने वाली कालिंदी एक्सप्रेस फिरोजाबाद से निकली थी। ट्रेन को चला रहे थे लोको पायलट SN सिंह, उन्होंने देखा कि ट्रैक पर नीलगाय खड़ी है। इससे पहले कि वो ट्रेन को रोक पाते कि ट्रेन नीलगाय से जा टकराई. इस टक्कर की वजह से ट्रेन के वैक्यूम ब्रेक एक्टिव हो गए और ट्रेन अपनी जगह पर खड़ी हो गई। इसके बाद फिरोजाबाद स्टेशन के पश्चिमी केबिन पर असिस्टेंट स्टेशन मास्टर ने केबिनमैन से फोन करके ट्रैक के क्लियरेंस बारे में पूछा? जिसके जवाब में उस तरफ से बताया गया कि ट्रैक क्लियर है। स्टेशन मास्टर ने पुरुषोत्तम एक्सप्रेस को हरी झंदी दे दी, जिसे उसी ट्रैक से गुजरना था जिस पर कालिंदी एक्सप्रेस खड़ी थी। 100 किलोमीटर प्रति घंटा से भी ज्यादा रफ्तार से पुरुषोत्तम एक्सप्रेस फिरोजाबाद स्टेशन से निकली। थोड़ा ही आगे चलकर ड्राइवर ने देखा कि ट्रैक पर एक ट्रेन पहले से खड़ी है। ड्राइवर के पास इमरजेंसी ब्रेक लगाने का ऑप्शन था, लेकिन वो जानते थे कि इतनी रफ्तार में ब्रेक लगाए तो ट्रेन के सभी डिब्बे एक-दूसरे के ऊपर चढ़ जाएंगे। उनके पास अब ज्यादा कुछ करने का ऑप्शन नहीं था। कुछ ही सेकेंड्स बाद पुरुषोत्तम एक्सप्रेस कालिंदी एक्सप्रेस में पीछे से जा घुसी। ट्रेन की बोगियों में सो रहे सैकड़ों लोगों को जागने का मौका ही नहीं मिला। बोगियां एक-दूसरे के ऊपर चढ़ गईं, सैकड़ों लोग इन बोगियों में पिस गए। जैसे-जैसे सूरज निकला, हादसे की भयावहता भी सामने आने लगी, ट्रैक के आसपास शरीर के अंग बिखरे पड़े थे। अगले तीन दिनों तक रेस्क्यू ऑपरेशन चला। आंकड़ों के मुताबिक इस हादसे में करीब 400 लोग मारे गए और 500 से ज्यादा घायल हुए थे।
असम रेल हादसा
तारीख थी 2 अगस्त 1999, ब्रह्मपुत्र मेल में भारतीय सैनिक असम से सीमा तक जा रहे थे। जबकि अवध असम एक्सप्रेस गुवाहाटी जा रही थी और गैसल के नज़दीक रुकी हुई थी। सिग्नल ख़राब हो जाने की वजह से ब्रह्मपुत्र मेल को उसी पटरी पर जाने की इजाज़त दे दी गयी। उसने रात के डेढ़ बजे आगे से अवध असम एक्सप्रेस को टक्कर मारी। अवध असम का इंजन हवा में उड़ गया और विस्फोट की ताकत से दोनों गाड़ियों के यात्री आसपास की इमारतों और खेतों में जा कर गिर गए। इस दुर्घटना में 268 लोगों की मौत हो गयी थी और 359 घायल हो गये थे। यह घटना भारत की सबसे बड़ी और भयानक रेल दुर्घटनाओं में से एक है।
1998 का पंजाब रेल हादसा
पंजाब के खन्ना में 26 नवंबर 1998 को हुए भीषण रेल हादसे में कम से कम 212 लोग मारे गए थे। हादसा उस वक्त हुआ, जब जम्मूतवी सियालदह एक्सप्रेस पटरी से उतरी और फ्रंटियर मेल के डिब्बों से टकरा गई थी। इन दोनों ट्रेनों में कुल मिलाकर करीब 2000 लोग सवार थे। यहां लुधियाना से अंबाला जा रही फ्रंटियर मेल खन्ना और चावपैल स्टेशनों के बीच पटरी से उतर गई। इस वजह से इस ट्रेन के कुछ डिब्बे बगल वाले ट्रैक पर जा गिरे। इसी दौरान दूसरी दिशा से आ रही जम्मूतवी सियालदह एक्सप्रेस पटरियों पर गिरे डिब्बों से टकरा गई जिसमें सैकड़ों लोगों ने दम तोड़ दिया। इस घटना को याद करते हुए आज भी इस हादसे में अपनों को खोने वाले लोगों की आंखों में आंसू आ जाते हैं।
पश्चिम बंगाल का ट्रेन पर नक्सली हमला
तारीख 28 मई, 2010 को पश्चिम बंगाल के झाड़ग्राम में मुंबई जा रही एक एक्सप्रेस ट्रेन को नक्सलियों ने अपना निशाना बनाया था। इस भयानक हादसे में ट्रेन के 13 डिब्बे पटरी से उतर गए थे और इनमें से पांच दूसरी लाइन पर आ रही मालगाड़ी से टकरा गए थे। टक्कर इतनी भयानक थी कि मालगाड़ी से टकराए 5 डिब्बे बुरी तरह पिचक गए थे और मुड़े-तुड़े डिब्बों के बीच फंसे यात्रियों के शरीर के हिस्से दिखाई दे रहे थे। बताया जाता है कि इस हादसे में 170 से ज्यादा लोगों की मौत हो गई थी और 500 से ज्यादा लोग बुरी तरह जख्मी हो गए थे।
बहरहाल, यह तो अभी हमने सिर्फ गिने चुने ही रेल हादसे आपके सामने रखे हैं। देश में अब तक ऐसे बहुत से रेल हादसे हो चुके हैं। आपको जानकर हैरानी होगी कि अमेरिका और चीन के बाद दुनिया में तीसरा सबसे बड़ा रेल सिस्टम होने के बावजूद भारतीय रेल अब भी ब्रिटिश काल के इंफ्रास्टक्चर पर चल रही है। जिस हिसाब से पटरियों पर रेलवे ट्रैफिक का दबाव बढ़ रहा है, उस हिसाब से इंफ्रास्टक्चर अपग्रेड नहीं हो पा रहा है। एक ओर तो सरकार बुलेट ट्रेन चलाने की योजना बना रही है, दूसरी ओर मूलभूत ढांचे में बदलाव नहीं होने की वजह से सामान्य ट्रेनों को हादसों से बचाने में सरकार नाकाम दिख रही है। रेलवे के सामने सेफ्टी एक बड़ा मसला बना हुआ है। अगर इस ओर विशेष ध्यान नहीं दिया गया तो मुमकिन है कि आगे भी इसी तरह के बड़े रेल हादसे होते रहेंगे।
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