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76th Independence Day: स्वतंत्रता दिवस पर PM लाल किले से ही देश को क्यों करते हैं सम्बोधित...  

 

76th Independence Day: दशकों से हिन्दुस्तान की सत्ता का प्रतीक लाल किला वर्चस्व की निशानी है। यह किला मुगलों से लेकर अंग्रेज और आजादी के बाद तक भारतीय राजनीति का केंद्र बना हुआ है।

आज़ादी के बाद से ही लाल किले पर हर वर्ष 15 अगस्त को देश के प्रधानमंत्री राष्ट्रीय ध्वज फहराकर देश को संबोधित करते हैं। आज हम आपको बताने जा रहे हैं कि आखिर स्वतंत्रता दिवस के मौके पर प्रधानमंत्री लाल किले से ही क्यों राष्ट्र को संबोधित करते हैं, और लाल किले की जगह कहीं और से क्यों नहीं करते?

दरअसल, राजनीति में प्रतीकों का बहुत महत्व होता है। यही वजह है कि देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने लाल किले की प्राचीर से पहली बार अंग्रेजी हुकूमत का झंडा उतारकर भारत का राष्ट्रीय ध्वज फहराकर लगाया था, जिसके बाद से लाल किला देश में सत्ता का केंद्र बन गया और तभी से ये एक प्रथा बन गयी, जिसे आज भी जारी रखते हुए हर साल देश के प्रधानमंत्री लाल किले से संबोधित करते हैं।

बता दें, लाल किले का निर्माण 17वीं शताब्दी में पांचवें मुगल बादशाह शाहजहां ने कराया था। इस किले को सम्राट की शक्ति और भव्यता के प्रतीक के रूप में बनाया गया था और लगभग 200 वर्षों तक मुगल राजधानी के रूप में कार्य किया गया था। और इसे साल 2007 में यूनेस्को ने अपनी वर्ल्ड हेरिटेज साइट की लिस्ट में शामिल किया था।

दरअसल, शाहजहां को अपनी राजधानी आगरा की जगह दिल्ली शिफ्ट करनी थी, जिसके लिए 29 अप्रैल 1638 में शाहजहां ने लाल किले का निर्माण शुरू करवाया, जो 1648 में पूरा हुआ और लाल किला को बनकर तैयार होने में 10 साल का समय लग गया।

क्या आपको पता है लाल किले का असली नाम किला-ए-मुबारक है। लाल किला ने 1857 तक मुगल साम्राज्य की राजधानी के रूप में कार्य किया। इसके बाद, अंग्रेजों ने इस पर कब्जा कर लिया और किले पर अपना झंडा लगा दिया।

भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के अनुसार, इस इमारत के कई हिस्से चूना पत्थर से बनाए गए थे, जिसकी वजह से इसका असली रंग अलग था। पर गुजरते हुए वक्त के साथ जब किले के कई हिस्से खराब होकर गिरने लगे तो ब्रिटिश सरकार ने किले को लाल रंग से रंगवा दिया और इसी वजह से बाद में इसे 'लाल किला' के नाम से जाना जाने लगा।

क्या आपको पता है कि लाल किला एक वास्तुशिल्प कृति है, जिसमें मुगल, फारसी और हिंदू शैलियों का मिश्रण है। किले की दीवारें लाल बलुआ पत्थर से बनी हैं, और परिसर 255 एकड़ के क्षेत्र में फैला हुआ है। किला एक खंदक यानी एक गहरी और चौड़ी खाई से घिरा हुआ है और मुख्य प्रवेश द्वार लाहौरी गेट के माध्यम से होता है। यह कभी शाही व्यापारियों का घर हुआ करता था। 

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